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प्रेम विहीन जीवन

प्रेम विहीन जीवन, कठोर, दर्दमय, उदासीनता से भरपूर, कभी होता था मुश्किलों से भरा एक प्रश्न, पर आज नहीं रह गई है वो बात, एक प्रेमी बिन भी खुशहाल रहते हैं सब जनजात, किसी और से नहीं खुद से प्रेम करना है परमार्थ, क्योंकि स्वयं में ही तो विराजमान हैं हम सबके जगन्नाथ।

करवाचौथ

प्यार-व्यार अपनी जगह, इज़हार-ए-मोहब्बत किसी और दफा। आज तो बस, इन कहर बरपाती आखों के साथ-साथ इन भूखी प्यासी माशूकाओं को भी ए चांद, बस तेरा इंतजार है।

आंसु

आंसुओ में, दर्द है, गुस्सा है, भावुकता भरी यादें हैं। उन्हीं आंसुओ में, खुशी है, उम्मीद है, मेहनत की मिठास भी है।

वो सब कुछ, हम कुछ भी नहीं।

वो फूलों का राजा गुलाब ही सही, हम फूलों पर मंडराते भंवरे। वो चांद की चांदनी ही सही, हम चांदनी को तरसते अमावस की रातें। वो जग को नचाते नटराज ही सही, हम पैरों में उनके लिपटे घुंगरू ही सही।