क्या करें
|

क्या करें

सालों साल बीत गए, आंखों के आसूं भी अब सूख गए, बाहरी जिंदगी जीना तो हम सीख गए, पर अंदर से हम बिलकुल ही टूट गए, उम्मीद भी अब हमसे किनारा कर रही! समझदारों की इस दुनिया में… एक हमीं को पागल साबित करने पर तुल रही! हो सके तो एक बार इतना बता जाना,…

|

उम्मीद

तेरे लिखे खतों का अंबार लगाए बैठै हैं| तेरी हर याद को मन में संजोए बैठै हैं| तू वापिस आएगी! इस उम्मीद में, आज भी, चौखट पर आंखे टिकाएं बैठै हैं।

मन करता है…

सुबह की ओस बन, तेरे आंगन में आ जाने का मन करता है| बारिश की बूंद बन, तेरे गालों को छू जाने का मन करता है| तू किस कदर ज़रूरी बन चुका है मेरे लिए, ये सब तुझे आज बता देने का मन करता है|