क्या करें
|

क्या करें

सालों साल बीत गए, आंखों के आसूं भी अब सूख गए, बाहरी जिंदगी जीना तो हम सीख गए, पर अंदर से हम बिलकुल ही टूट गए, उम्मीद भी अब हमसे किनारा कर रही! समझदारों की इस दुनिया में… एक हमीं को पागल साबित करने पर तुल रही! हो सके तो एक बार इतना बता जाना,…

क्या हम साथ ना थे तब तुम्हारे?

जब तुम बचपन में झूठ बोलते, चोरी करते पकड़े जाते, और मां की मार से भी अक्सर बच जाते, क्या उस वक्त साथ नहीं थे हम तुम्हारे? जब तुम छोटी मोटी खुशियां मनाते, त्योहारों में अपने रूठे हुओं को मनाते, हर एक मन की इच्छा को मुराद बना पा जाते थे, क्या उस वक्त साथ…

|

उम्मीद

तेरे लिखे खतों का अंबार लगाए बैठै हैं| तेरी हर याद को मन में संजोए बैठै हैं| तू वापिस आएगी! इस उम्मीद में, आज भी, चौखट पर आंखे टिकाएं बैठै हैं।

मन करता है…

सुबह की ओस बन, तेरे आंगन में आ जाने का मन करता है| बारिश की बूंद बन, तेरे गालों को छू जाने का मन करता है| तू किस कदर ज़रूरी बन चुका है मेरे लिए, ये सब तुझे आज बता देने का मन करता है|

| |

प्रेम विहीन जीवन

प्रेम विहीन जीवन, कठोर, दर्दमय, उदासीनता से भरपूर, कभी होता था मुश्किलों से भरा एक प्रश्न, पर आज नहीं रह गई है वो बात, एक प्रेमी बिन भी खुशहाल रहते हैं सब जनजात, किसी और से नहीं खुद से प्रेम करना है परमार्थ, क्योंकि स्वयं में ही तो विराजमान हैं हम सबके जगन्नाथ।

करवाचौथ

प्यार-व्यार अपनी जगह, इज़हार-ए-मोहब्बत किसी और दफा। आज तो बस, इन कहर बरपाती आखों के साथ-साथ इन भूखी प्यासी माशूकाओं को भी ए चांद, बस तेरा इंतजार है।

आंसु

आंसुओ में, दर्द है, गुस्सा है, भावुकता भरी यादें हैं। उन्हीं आंसुओ में, खुशी है, उम्मीद है, मेहनत की मिठास भी है।

वो सब कुछ, हम कुछ भी नहीं।

वो फूलों का राजा गुलाब ही सही, हम फूलों पर मंडराते भंवरे। वो चांद की चांदनी ही सही, हम चांदनी को तरसते अमावस की रातें। वो जग को नचाते नटराज ही सही, हम पैरों में उनके लिपटे घुंगरू ही सही।