अधूरेपन की पहचान | Identification of incompleteness
अधूरेपन की पहचान कहीं मैं और तुम तो नहीं! मिल कर भी जो बिछड़ गए ये संयोग था या विधि का विधान! बिछड़ ही गए तो उसमें भी कुछ नया नहीं वो प्यार ही क्या जिसकी कोई जुदाई की दास्तां नहीं!
अधूरेपन की पहचान कहीं मैं और तुम तो नहीं! मिल कर भी जो बिछड़ गए ये संयोग था या विधि का विधान! बिछड़ ही गए तो उसमें भी कुछ नया नहीं वो प्यार ही क्या जिसकी कोई जुदाई की दास्तां नहीं!
बहते हुए आसूं भी मेरे उस पत्थर दिल को पिघला ना सके जिसने दिल से ही निकाल दिया उसकी आंखों में इज्जत हम पा न सके हाथ उठाया था उसने इस जिस्म पर पर ज़ख्म मिले मुझे इस दिल पर वादा है ये अब खुद से अपनी आन का मान रखेंगे वो चाहे अब पैरों…
तेरे दिए घाव दर्द दे रहे हैं पर इन्हें नासूर नहीं बनने दूंगी मैं। इस दर्द से मजबूत बन इन्हीं घावों को खुद ही भर लूंगी मैं। तू मेरी छोड़, अपना ध्यान रखना! कहीं मुझे घाव देने की वजह से तू अपना नुकसान ना कर लेना।
अमावस की काली रात थी, ना कहीं रोशनी, ना कोई आवाज़ थी। इतने में एक आघात हुआ, किसी का दिल टूटा, इसका पूर्ण एहसास हुआ। देख नहीं पाया मैं आंसूओं की धारा, पर उस पल से ही बदल गया मेरा जीवन सारा। ढूंढने जो निकला तो कुछ नज़र ना आया समझ चुका था मैं कि…
तेरी याद में अक्सर हम तेरी गलियों से गुजरा करते हैं। कहीं से भी तू दिख जाए, ये मन में कामना किए चलते हैं। पर मन में डर भी होता है कि तू सामने आ जाएगी तो क्या करेंगे! तुझे देख कर भी अनदेखा तो हम कर नहीं पाएंगे, पर ये नौबत ही कभी नसीब…
ऐसे लोगों के लिए है जो किसी अपने से ही धोखा खा लेते हैं। जो उस शख्स के लिए अब भी ‘मेरे अपने’ शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं कि मेरे अपने ने ही मुझे धोखा दिया। किसी पर विश्वास करना इंसानी फितरत का एक हिस्सा है, हम सब करते हैं। विश्वास करना…
आज की ये कविता उन लोगों के लिए जो खुद को अकेला समझ रहे हैं, खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। कविता, एक माध्यम है दिल के जज़्बातों को शब्दों के द्वारा बाहर लाने के लिए। उम्मीद है, ये कविता पढ़ कर कोई इससे खुद को जोड़ पायेगा। ऐसा हो जाये, तो मैं…
कुछ रिश्ते हमेशा बने रहते हैं, और कुछ रिश्ते टूट जाते हैं। अक्सर जब हम किसी रिश्ते में किसी के साथ होते हैं, तो कई बार हमारी उनसे नहीं बन पाती, और हम उस रिश्ते से बाहर निकल जाते हैं। रिश्ते से बाहर निकलना तो आसान है, पर उस शख्स को दिल से निकालना कभी…
सालों साल बीत गए, आंखों के आसूं भी अब सूख गए, बाहरी जिंदगी जीना तो हम सीख गए, पर अंदर से हम बिलकुल ही टूट गए, उम्मीद भी अब हमसे किनारा कर रही! समझदारों की इस दुनिया में… एक हमीं को पागल साबित करने पर तुल रही! हो सके तो एक बार इतना बता जाना,…
किसी को रुसवा कर डालूं, ऐसे मेरे शौक कहां| किसी को दिल का दर्द दे बैठूं, ऐसी मेरी ख्वाहिशें कहां| हम तो वो हैं जो दिल पर जख्म खाते हैं| जख्म खाकर भी, एक मुस्कान लिए कहते हैं, कि रब्बा, उसे कोई दर्द ना देना, मेरे इस दर्द के बदले में।