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आन | Dignity


बहते हुए आसूं भी मेरे
उस पत्थर दिल को पिघला ना सके

जिसने दिल से ही निकाल दिया
उसकी आंखों में इज्जत हम पा न सके

हाथ उठाया था उसने इस जिस्म पर
पर ज़ख्म मिले मुझे इस दिल पर

वादा है ये अब खुद से
अपनी आन का मान रखेंगे

वो चाहे अब पैरों में भी पड़ जाए
पर हम उसके साए से भी दूर रहेंगे

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