क्या हम साथ ना थे तब तुम्हारे?


जब तुम बचपन में झूठ बोलते, चोरी करते पकड़े जाते,

और मां की मार से भी अक्सर बच जाते,

क्या उस वक्त साथ नहीं थे हम तुम्हारे?

जब तुम छोटी मोटी खुशियां मनाते,

त्योहारों में अपने रूठे हुओं को मनाते,

हर एक मन की इच्छा को मुराद बना पा जाते थे,

क्या उस वक्त साथ नहीं थे हम तुम्हारे?

गरीबी में, बीमारी में, हर बेमौसम की मुसीबत में,

तुम्हें सुलाते, तुम्हें खिलाते,

तुम्हारी हर ज़रूरत का ध्यान रखते थे,

क्या उस वक्त साथ नहीं थे हम तुम्हारे?

आज जब एक और परीक्षा में तुम जूझ रहे हो,

अपनों के मुड़ते मूंह देख रहे हो,

तब कैसे तुमने यह सोच लिया,

और कैसे तुमने यह मान लिया कि

कि अब हम पास नहीं हैं तुम्हारे..

हम तुमको छोड़कर जाना भी चाहें,

तो कहां जा पाएंगे ।

जब जब तुम आंखें बंद करके मन से हमें बुलाओ,

हम खींचे चले आयेंगे ।

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