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प्रेम विहीन जीवन


प्रेम विहीन जीवन,

कठोर, दर्दमय, उदासीनता से भरपूर,

कभी होता था मुश्किलों से भरा एक प्रश्न,

पर आज नहीं रह गई है वो बात,

एक प्रेमी बिन भी खुशहाल रहते हैं सब जनजात,

किसी और से नहीं खुद से प्रेम करना है परमार्थ,

क्योंकि स्वयं में ही तो विराजमान हैं हम सबके जगन्नाथ।

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