मेरा रूप
बहते पानी सा रूप है मेरा, तू मुझे समझ, ए नासमझ। नभ में भी मैं, धरा में भी मैं, इस नशवर शरीर के कण कण में भी मैं। मैं कोप में आऊ तो सबको बहा ले जाऊं, ठंडक देने पे आऊ, तो अग्नि को भी शान्त कर जाऊं। मैं मुश्किलों में रुकता नहीं, पत्थरों से भी मैं डरता नहीं, एक बूंद से ही चीर के, मैं खुद के लिए राह बना लूं। मैं वो हूं, जिसमें मिलूं, उसका बन जाऊं, जिस रंग में घुलूं, उस रंग का बन जाऊं।