अक्सर फुरसत में बैठें बैठें,
यह सोचना चाहा है,
की आखिर इन टेढ़ी मेढ़ी,
गाढ़ी फीखी लकीरों का राज क्या है,
क्यों ये कहीं से शुरू होती हैं,
क्यों ये अचानक कहीं रुक जाती हैं,
क्यों ये एक समान नहीं हैं,
क्यों ये तेरे जैसी नहीं हैं,
किस स्याही से आखिर लिखीं हैं ये,
जो किसी साबुन से भी मिटती नहीं,
हर ज़ख्म का निशान फ़ीखा पड़ जाता है,
पर ये कभी फिखी पड़ती नहीं।
लोग कहते हैं कि
ये लकीरें तकदीर बताती हैं,
समय से पहले ही भविष्य बताती हैं,
गर ऐसा है तो यह सच क्यों नहीं,
इन लकीरों का लिखा हुआ वाक़ई हो,
यह ज़रूरी तो नहीं|
देखा है हमने लोगों को तकदीरें बदलते हुए,
इन लकीरों के उलट ज़िन्दगी बनाते हुए,
कहते हैं वो जो की हैं डॉक्टर,
सृष्टि का नहीं, बल्कि विज्ञान का है यह खेल,
बन जाती हैं ये लकीरें|
जब मां के गर्भ में होती हैं एक संतान,
वो कहते हैं कि बंद मुट्ठी रखने से
बन जाती हैं यह लकीरें,
नौ माह तक ऐसे ही रहने से
गाढ़ी हो जाती हैं यह लकीरें,
गर ऐसा है तो क्यों नहीं
एक समान किन्हीं दो की लकीरें,
क्या यह संभव नहीं की
एक समान बंद हो किन्हीं दो नवजात की मुट्ठी