मैं भी ना !
मैं भी ना... किसी के कहने पर जो लिखने बैठूं, तो लिख नहीं पाती । कुछ सोचना जो चाहूं, तो सोच नहीं पाती । पर... ख़ुद से जब कलम चलाना चाहूं, तो धारा सा प्रवाह बहता चला जाता है ! पता ही नहीं चलता कि कब... मन का सारा फितूर एक कागज़ के पन्ने पर बाहर निकल आता है ।