आरजू थी
आरजू थी कि उनसे दिल हल्का करें, कुछ अपनी कहें, कुछ उनकी सुनें। कमबख़्त, वो हमें छोड़, किसी ओर के दर पे जा गिरे, तो अब हम क्या करें। आरजू थी कि उनके आशिक़ हो जायें, गम आध करें, नयन चार करें। वो, 'आशिक़ हूँ मैं किसी ओर का ', यह कह चलें, दिल तोड़ चलें। आरजू थी कि उनके रंग में रंग जायें, और उन्हें भी रंगीन बना दें। वो जग का ख़ौफ़ दिखा गये, सूना हमें बना गये। आरजू थी कि उनके पहलू में बैठें, पल भर जियें, पल भर मरें। कमर्जफ, जीना छोड़, वो तो अल्हा को मुबारक हुए हमेशा के लिए।