आई है एक ऐसी विपत्ति


आई है एक ऐसी विपत्ति, 

जो किसी कल्पना से भी परे है|


ना किसी एक देश विशेष से संबंधित, 

वरन् पूरे विश्व पर आन पड़ी है|

बिन जंजीरों के बेड़ियां बंध गईं, 

हर पद चाल की गति इसने धीमी की है।


कैसी है यह एक पहेली, 

अपनों के लिए अपनों से जिसने बड़ा दी है दूरी|

गज़ब है इसके ठहराव की कोशिश, 

कहते हैं, भागने में नहीं,

बल्कि थम जाने में छिपी है इसकी युक्ति।


जो अब तक सब था किया, 

उसको कुछ पल भूल जाना होगा,

अपनों के लिए, 

अपनों से दूरी बना कर अब रहना ही होगा|


कुछ पल के लिए ही सही, 

पीड़ा से भरा यह लम्हा सहना ही होगा|

जिस तरह बन सके, उस तरह, 

आशा का एक दीप जलाना ही होगा|


हो सके एक नया मानव उदय,

ऐसा एक संकल्प जगाना ही होगा|

सहमी हुई, मरती हुई सांसों को, 

उज्ज्वल भविष्य की तरफ ले जाना ही होगा।

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