बुल्ले-शाह | Bulle- Shah
बरसों के बाद चमन में कुछ फूल खिले हैं अरसों के बाद मेरी झोपड़ में दीए जले हैं दशकों से जहां कोई चिंगारी तक नहीं दहकी आज वहां बिन मौसम ही सब तीज त्यौहार मने हैं बिन रूह के जैसे लिखने वाले एक अदने से शायर को आज बुल्ले शाह मिले हैं